परमार्थ निकेतन से नागपंचमी के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं देते हुए स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह पर्व केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की उस गूढ़ चेतना का प्रतीक है, जो समस्त सृष्टि के साथ सह-अस्तित्व और करुणा का संदेश देती है।
उन्होंने बताया कि नागों को सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र और दिव्य माना गया है। भगवान शिव द्वारा वासुकी नाग को हार के रूप में धारण करना और भगवान विष्णु का शेषनाग पर विराजमान होना, नागों की शक्ति, संतुलन और धैर्य के प्रतीक रूप में प्रतिष्ठा को दर्शाता है।
नागपंचमी के समय वर्षा ऋतु में सर्पों के प्राकृतिक आवास प्रभावित होते हैं, ऐसे में उनकी पूजा संरक्षण का संकल्प भी बन जाती है। यह पर्व पंचतत्वों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है, विशेषकर पृथ्वी और जल से जुड़े नागों के प्रति।

स्वामी जी ने कहा कि योग परंपरा में नाग ‘कुंडलिनी शक्ति’ का प्रतीक है, जो आत्मबोध की ओर ले जाती है। नागदेवता की पूजा से न केवल भय दूर होता है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा भी जागृत होती है।
आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता ह्रास से जूझ रही है, तब नागपंचमी हमें याद दिलाती है कि सह-अस्तित्व ही सृष्टि के संतुलन की कुंजी है। यह पर्व हमें धर्म को केवल पूजा तक सीमित न रखते हुए, प्रत्येक जीव में ईश्वर का दर्शन करने की प्रेरणा देता है।
अंत में स्वामी जी ने कहा कि नागपंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की करुणा, संवेदना और चेतना की जीवंत अभिव्यक्ति है। आइए, इस दिन हम सभी प्राणियों के प्रति दया और सह-अस्तित्व का संकल्प लें।
Reported By: Arun Sharma












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