उत्तराखंड का प्रवेश द्वार हरिद्वार, जो विश्व का सबसे बड़ा गंगा तीर्थ माना जाता है, आज शासन की घोर उपेक्षा और भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार हो गया है। चार इंजन की सरकार के बावजूद हरिद्वार में भ्रष्टाचार, अफसरशाही की मनमानी और राजनीतिक टकराव से हालात बद से बदतर हो गए हैं।
सड़कों की हालत युद्ध क्षेत्र जैसी है, बारिश में जलनिकासी की व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाती है और शहर में गंदगी से भरी एक और ‘गंगा’ बहने लगती है। कुम्भ के नाम पर आधे-अधूरे विद्युत व गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट करोड़ों खर्च करने के बावजूद अधूरे पड़े हैं।
खनन माफिया का खुला खेल आज भी जारी है। हाईकोर्ट द्वारा 48 स्टोन क्रशरों को सीज करने के बावजूद, रात में भारी मशीनों से अवैध खनन बेधड़क चल रहा है — जिसमें सत्ताधारी दल के संरक्षण का आरोप लग रहा है।
भीड़भाड़ और प्रशासनिक लापरवाही के कारण तीर्थ यात्रियों की मौतें अब आम बात हो गई हैं। हादसों पर आयोग बैठते हैं, रिपोर्ट बनती है और फिर सब फाइलों में दफन हो जाता है — जैसे 1996 की सोमवती अमावस्या की दुर्घटना, मनसा देवी हादसा, या नगर निगम में करोड़ों के घोटाले।
राजनीतिक टकराव और लापरवाह जनप्रतिनिधि भी हरिद्वार के पतन के जिम्मेदार हैं। 25 वर्षों से एक ही राजनीतिक लॉबी के हाथ में नेतृत्व रहने के बावजूद न विकास हुआ, न पारदर्शिता आई। नगर निगम में पूर्व प्रशासक पर करोड़ों के घोटाले का आरोप है लेकिन जांचें अब भी लंबित हैं।
विपक्ष का हाल भी बदतर है — बंटा हुआ, कमजोर और मौन। चारधाम यात्रा रजिस्ट्रेशन को ऋषिकेश शिफ्ट कर हरिद्वार के व्यापारियों की कमर तोड़ दी गई। अब मसूरी जाने वालों के रजिस्ट्रेशन नियमों ने और चिंता बढ़ा दी है।
हरिद्वार की जनता, व्यापारी और तीर्थ यात्री सब चुप हैं या सिर्फ नारों तक सीमित हैं — जबकि भ्रष्टाचार, अनदेखी और लूट का खुला खेल जारी है।
माँ गंगा की रेती न्याय का प्रतीक है, न देती है, न लेती है, और जब लेती है तो सब छीन लेती है — यह बात हरिद्वार के इतिहास ने कई बार सिद्ध की है। समय आ गया है कि शासन और समाज, दोनों जागें — वरना ये तीर्थ शहर एक दिन इतिहास में सिर्फ अफसोस बनकर रह जाएगा।
Reported By: Ramesh Khanna











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