उत्तराखण्ड के पंचायत चुनावों में असली मुद्दे कहीं पीछे छूट गए हैं, अब चर्चा है दोहरे वोटरों की, जो लोकतंत्र को “पर्यटक वोट यात्रा” बना चुके हैं। शहर में रहकर सरकारी सुविधा लेते हैं और चुनाव आते ही गांव पहुंचकर फैसला सुनाते हैं, उस गांव के लिए, जहां उनका नाम तो है, पर काम कुछ नहीं।
एक साहब, जो देहरादून में नौकरी करते हैं, पंचायत चुनाव के नाम पर गांव पहुंचे। वोट डालते ही प्रधान प्रत्याशी ने खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी, आने-जाने का किराया, दो दिन दारू-मुर्गा और ऊपर से राजसी स्वागत! जब देहरादून लौटे तो लगे बड़े-बड़े फॉलोअप देने, “हम न होते तो हार जाता तुम्हारा उम्मीदवार!”
अब सोचिए, गांव में दिन-रात पसीना बहाने वाला नौजवान तो बस तमाशबीन बनकर रह गया, जबकि फैसला लिया उस आदमी ने जो साल में सिर्फ एक बार गांव आता है, वो भी “वोट टूरिज्म” के तहत!
क्या यह लोकतंत्र का अपमान नहीं? दो जगह वोटर होना कोई गर्व नहीं, बल्कि लोकतंत्र के साथ छल है। चुनाव आयोग को चाहिए कि आधार और वोटर आईडी को पुख्ता तरीके से लिंक करे, ताकि हर व्यक्ति सिर्फ अपने वास्तविक निवास स्थान से ही वोट डाले।
वरना ये “दारू-मुर्गा लोकतंत्र” धीरे-धीरे गांव की जड़ों को खोखला कर देगा।
Reported By: Arun Sharma












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