ऋषिकेश/हरिद्वार, 24 नवम्बर। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार स्थित श्री गुरु गोबिन्द सिंह शोधपीठ में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। यह संगोष्ठी श्री गुरुतेगबहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित थी, जिसमें सिख गुरू परंपरा, धर्म, समाज और राष्ट्रीय अवधारणा पर गहन चर्चा व विमर्श हुआ।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि माननीय राज्यपाल एवं कुलाधिपति ले० ज० श्री गुरमीत सिंह जी थे। उनके साथ परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी की वंदनीय उपस्थिति रही।
गरिमामयी उपस्थिति
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उपस्थित रहे—
सरदार नरेन्द्र जीत सिंह बिंद्रा, अध्यक्ष, गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब समिति
श्री श्यामवीर सैनी, राज्य मंत्री, उत्तराखंड
श्री दिनेशचन्द्र शास्त्री, कुलपति
श्री दीपक कुमार, सचिव, संस्कृत शिक्षा
डॉ. अजय परमार, समन्वयक
साथ ही अनेक विद्वान, शोधकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
दो दिवसीय विमर्श के मुख्य बिंदु
संगोष्ठी में निम्न विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई—
सिख गुरुओं की ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक विरासत
धर्म, समाज और राष्ट्रीय चेतना में गुरु परंपरा का योगदान
शौर्य, त्याग और मानवता के लिए समर्पित गुरु तेगबहादुर साहिब का बलिदान
आधुनिक समाज में गुरुओं की शिक्षाओं का समकालीन महत्व
अधिवेशनों में विद्वानों ने ग्रंथों, प्रमाणिक स्रोतों और ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर शोध प्रस्तुत किए।
समापन समारोह की मुख्य बातें
माननीय राज्यपाल ले० ज० गुरमीत सिंह जी ने कहा कि
“गुरु तेगबहादुर साहिब जी की शहादत केवल सिख समुदाय के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए अमर प्रेरणा है। सत्य और मानवता के लिए अदम्य साहस ही उनका वास्तविक संदेश है।”
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने वक्तव्य में कहा—
“यदि दशमेश गुरु न होते, तो भारत का स्वरूप आज भिन्न होता। उनका बलिदान किसी सत्ता या विरासत के लिए नहीं, बल्कि मानवता और धर्म की रक्षा के लिए था।”
उन्होंने युवाओं को गुरु परंपरा के आदर्श जीवन में अपनाने का संदेश दिया और कहा कि हमारी यात्रा प्रतिशोध नहीं, बल्कि शोध, समझ और सत्कर्म की होनी चाहिए।
कृति का विमोचन
समारोह में गुरु तेगबहादुर साहिब जी के जीवन पर आधारित विशेष कृति का वंदनीय विमोचन किया गया।
संगोष्ठी की महत्ता
यह राष्ट्रीय संगोष्ठी न केवल एक श्रद्धांजलि थी, बल्कि
एक प्रेरणास्त्रोत,
एक शोध–मंच,
और राष्ट्रीय व नैतिक चेतना को सुदृढ़ करने वाला आयोजन था।
सिख गुरुओं के त्याग, बलिदान, साहस और मानवीय मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का यह प्रयास अत्यंत सफल रहा।
Reported By: Arun Sharma












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