परम पूज्य संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में आज 25 जुलाई प्रातः 6.15 बजे से जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक कर शांतिधारा की गयी। इसके पश्चात संगीतमय कल्याण मंदिर विधान का आयोजन किया गया। विधान मे उपस्थित भक्तो ने बड़े भक्ति भाव के साथ 23वे तीर्थंकर चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ की आराधना की। आज के विधान के पुण्यार्जक महिला जैन मिलन मूकमाटी रहे।
पूज्य आचार्य श्री के पास बाहर से पधारे गुरुभक्तो का पुष्प वर्षायोग समिति द्वारा स्वागत अभिनन्दन किया गया।

भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति आराधना के दिन आज पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि हम भगवान के सम्मुख नहीं है जन्म मरण के सम्मुख है। भगवान जन्म मरण में विमुक्ख है। मोही प्राणी को संसारिक दुख अच्छा लगता है जबकि निरमोही प्राणी को सांसारिक दुःख बुरा लगता है। जिस क्षण हमने जन्म लिया है उसी क्षण ही आपकी मृत्यु प्रारम्भ हो गयी है। लेकिन आपको मरने का आभास नहीं हो रहा है। भगवान महावीर कहते है कि जो हमारे अन्दर सेवा, करुणा, दया, धर्म, त्याग, भक्ति, नियम के भाव मर गये हैं तो हे प्रभू कैसे वे जीवन्त हो इसके विषय में विचार करना है केवल सोचना नहीं है। वैसी क्रियाये करनी है जब हम वैसी क्रियाए करने लग जाते है तो हमारा मूकपना भी मुखरता में बदल जाता है परन्तु यह तब होगा जब हम भगवान के सम्मुख होगे।
Reported By: Shiv Narayan












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