दिल्ली—भारत की राजधानी—आज अपने ही धुएँ में घुट रही है। यह वही शहर है जिसे कभी “भारत का चेहरा” कहा जाता था, लेकिन अब वही शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित महानगरों में गिना जाता है।
मैं अपने परिजन को थाइराइड उपचार के लिए देहरादून के चकराता मार्ग स्थित एक प्रसिद्ध DM डिग्रीधारी चिकित्सक के पास ले जाता था। तीन वर्ष पूर्व तक वे सप्ताह में केवल दो दिन देहरादून आते थे, शेष चार दिन दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में कार्यरत रहते थे। हवाई यात्रा से वे दिल्ली-देहरादून का आना-जाना करते थे। परंतु इस वर्ष मालूम हुआ, —वे अब दिल्ली नहीं जाते। उन्होंने स्थायी रूप से देहरादून में निवास आरंभ कर दिया है। दिन में वे ग्राफिक एरा अस्पताल में लगभग दस लाख रुपये मासिक वेतन पर सेवाएँ देते हैं और सायंकाल अपने निजी क्लिनिक में मरीज देखते हैं। मैंने उनसे कारण नहीं पूछा, लेकिन उत्तर मुझे पता था—दिल्ली का प्रदूषण। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि दिल्ली के प्रख्यात चिकित्सक और अन्य विशेषज्ञ अब देहरादून में उपलब्ध हैं। किन्तु, इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है—देहरादून में जनसंख्या का तीव्र गति से विस्तार।
दो दिन पहले अक्टूबर 2025 की दिवाली के बाद दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 500 के पार चला गया—जो “गंभीर” श्रेणी का द्योतक है। PM2.5 का स्तर 304 µg/m³ और PM10 का 531 µg/m³ तक पहुँचा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 15–20 गुना अधिक है। पटाखों से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और भारी धातुएँ ठंडी हवा में फँसकर ज़हरीला बादल बनाती हैं। इस वर्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने दिवाली की रात PM2.5 का स्तर 675 µg/m³ दर्ज किया—सुरक्षित सीमा से 45 गुना ज़्यादा।
त्योहार की रोशनी हर बार धुएँ में बदल जाती है। ग्रीन पटाखों की अनुमति भी हालात नहीं सुधार पाई। 2025 में दिल्ली का AQI 345 रहा—2024 की तुलना में भी अधिक। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह केवल पटाखों का नहीं, बल्कि वाहनों (41%), सड़क की धूल (21%), और औद्योगिक उत्सर्जन (18%) का सम्मिलित परिणाम है।
दिल्ली में अब साँस लेना भी स्वास्थ्य जोखिम बन चुका है।
◆फेफड़े: अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और COPD के मामले 20% तक बढ़े हैं।
◆हृदय रोग: NO₂ और सूक्ष्म कणों से हृदयाघात व स्ट्रोक का खतरा बढ़ा।
◆कैंसर और गर्भावस्था: बेंजीन और फॉर्मेल्डिहाइड जैसे रसायनों से फेफड़ों का कैंसर और नवजात शिशुओं का कम वजन।
◆ विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्लीवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा अब लगभग 12 वर्ष घट चुकी है।
पलायन की लहर: देहरादून की ओर रुख
यह संकट अब सामाजिक-आर्थिक रूप भी ले चुका है। दिल्ली, गुड़गाँव, नोएडा और फरीदाबाद जैसे औद्योगिक केंद्रों से बड़ी संख्या में लोग देहरादून, मसूरी, हरिद्वार , ऋषिकेश, हल्द्वानी , काशीपुर की ओर पलायन कर रहे हैं। इनमें केवल आम नागरिक ही नहीं, बल्कि विशेषज्ञ वर्ग—डॉक्टर, वैज्ञानिक, अभियंता, सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी, और शिक्षाविद—भी शामिल हैं। एक अध्ययन के अनुसार, कर्नल से लेकर मेजर जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल तक सैकड़ों रिटायर्ड अधिकारी अब देहरादून में बस चुके हैं। देहरादून, जो कभी ‘शांत नगरी’ कहा जाता था, अब जनसंख्या और ट्रैफिक दोनों में तेजी से बढ़ रहा है। 2021 से 2025 के बीच यहाँ स्थायी निवासियों की संख्या में लगभग 17% वृद्धि दर्ज की गई है।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UKPCB) की 2025 रिपोर्ट बताती है कि दिवाली पर देहरादून का AQI 261 तक पहुँचा—‘खराब से गंभीर’ श्रेणी में। PM2.5 का स्तर 184 µg/m³ और PM10 का 230 µg/m³ दर्ज हुआ। यह स्पष्ट संकेत है कि देहरादून भी अब दिल्ली की राह पर अग्रसर है। शहर के भीतर निर्माण गतिविधियाँ, ट्रैफिक जाम, कूड़ा प्रबंधन की चुनौतियाँ और लगातार बढ़ते वाहन—सब मिलकर वायुमंडल को भारी बना रहे हैं। पहले जहाँ सर्दियों में राजपुर रोड से हिमालय की चोटियाँ साफ दिखाई देती थीं, अब वे भी धुंध की चादर में लिपटी नजर आती हैं।
विकास बनाम जीवन
दिल्ली खबरें बताती है कि “अंधाधुंध विकास” और “अंधी हवा” साथ नहीं चल सकते। यदि देहरादून ने अभी दिशा नहीं बदली—तो यह भी “मिनी दिल्ली” बनने में देर नहीं लगेगी। हमें ग्रीन डेवलपमेंट, वाहन सीमांकन, कचरा प्रबंधन और पहाड़ी शहरों के लिए विशिष्ट अर्बन पॉलिसी अपनानी होगी—वरना प्रदूषण का पलायन अंततः “सांस के पलायन” में बदल जाएगा।
दिल्ली की कहानी केवल आँकड़ों की नहीं—यह चेतावनी है कि जब शहर अपने नागरिकों को बाहर निकालने लगे, तो विकास की परिभाषा पर पुनर्विचार आवश्यक हो जाता है। देहरादून अभी भी उस मोड़ पर है जहाँ से राह बदली जा सकती है—बस यह तय करना है कि हम “स्वच्छ हवा” की ओर चलेंगे या “धुएँ के शहर” की ओर।
संदर्भ
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड डेटा
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड डेटा
दिल्ली स्वास्थ्य विभाग, 2024।
इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स, 2024
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन, 2025।
उत्तराखंड आधा दर्जन सरकारी
विभागों के डेटा।
Reported By: Shishpal Guasin













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