2 सितंबर उत्तराखंड के इतिहास का वह दिन है जब राज्य आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर पृथक राज्य के स्वप्न को साकार किया। मसूरी गोलीकांड की बरसी पर परमार्थ निकेतन से शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प दोहराया गया।
यह दिन त्याग और साहस की गाथा का स्मरण कराता है, जिसने समाज को अधिकार और पहचान के लिए खड़े होने की प्रेरणा दी। शहीदों ने केवल राज्य का निर्माण ही नहीं, बल्कि एक सशक्त, आत्मनिर्भर और समृद्ध उत्तराखंड का सपना देखा था।
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि उत्तराखंड की आत्मा उसकी नदियों, वनों, पर्वतों और संस्कृति में बसती है और शहीदों का बलिदान हमें इन्हें संरक्षित रखने का संदेश देता है।
खटीमा (1 सितंबर), मसूरी (2 सितंबर) और रामपुर तिराहा (2 अक्टूबर) की घटनाएँ राज्य आंदोलन के सबसे काले अध्याय मानी जाती हैं। इन्हीं बलिदानों की नींव पर उत्तराखंड का गठन हुआ।
शहीदों की स्मृति हमें सतत यह प्रेरणा देती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण के साथ राज्य को नई ऊँचाइयों पर ले जाना ही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि है।
Reported By: Arun Sharma












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