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राकेश खण्डूड़ी : सादगी और पत्रकारिता की मिसाल थे।

राकेश खंडूरी ने 2016 में अमर उजाला, देहरादून में ब्यूरो चीफ के रूप में जॉइन किया था। इससे पहले वह 1990 के दशक के अंत और 2006-07 तक अमर उजाला, शिमला में कार्यरत थे। व

Crime Patrol by Crime Patrol
August 29, 2025
in उत्तराखंड
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Rakesh Khanduri
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राकेश खंडूरी, मेरे बड़े भाई और मित्र, का आज हरिद्वार में अंतिम संस्कार किया गया। मैं साथियों के साथ शाम 5:30 बजे घर लौटा। उनके अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में पत्रकार, कुछ नेता और अन्य लोग शामिल हुए। आज दोपहर हम उनके डोईवाला स्थित निवास पर पहुंचे, तब तक मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव वहां से लौट चुके थे। उनके निधन का दुखद समाचार आज सुबह गुड मॉर्निंग के समय मिला। सभी लोग फोन पर बात कर रहे थे, दुखी थे और दौड़-दौड़कर उनके डोईवाला निवास पर पहुंचे।

राकेश खंडूरी अमर उजाला, देहरादून के ब्यूरो चीफ थे। जैसा कि मैंने पहले भी बताया, वह पिछले डेढ़ महीने से अस्वस्थ थे। इस दौरान उन्होंने कुछ समय के लिए ड्यूटी भी जॉइन की थी। उन्हें हृदय संबंधी समस्या थी और धमनियों में कुछ रुकावटें थीं। उन्होंने दिल्ली के गंगाराम और मैक्स अस्पताल में भी इलाज करवाया और कई अन्य अस्पतालों में जांच कराई। अंततः वह एम्स ऋषिकेश पहुंचे। कुछ डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि ओपन हार्ट सर्जरी करनी चाहिए। जबकि कुछ डॉक्टर ने सलाह दी कि स्टेंट डालना चाहिए, आज दिनभर यही चर्चा होती रही कि काश राकेश जी ने स्टेंट डलवा लिया होता, तो वह जीवित रहते। उनकी ओपन हार्ट सर्जरी एम्स ऋषिकेश के डॉ. राजा लहरी ने की थी।

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राकेश खंडूरी ने 2016 में अमर उजाला, देहरादून में ब्यूरो चीफ के रूप में जॉइन किया था। इससे पहले वह 1990 के दशक के अंत और 2006-07 तक अमर उजाला, शिमला में कार्यरत थे। वहां उन्हें समाचार संपादक राजेंद्र कोठारी और मेहरबान पवार ने शिमला ले जाकर नियुक्त किया था। 2007-08 के बाद उन्होंने जनवाणी और दैनिक उत्तराखंड जैसे अखबारों में भी काम किया। वह उन चुनिंदा पत्रकारों में से थे, जो सादगी और ईमानदारी से जीते थे। वह रोजाना 20-25 किलोमीटर की दूरी तय करके डोईवाला में अपने पैतृक निवास पर जाते थे, जो उनके पिता ने 1990 में बनवाया था। वह देर रात 11:30 बजे ड्यूटी खत्म होने के बाद मोटरसाइकिल से घर लौटते थे, चाहे सर्दी हो या गर्मी। डोईवाला के पास हाथियों का खतरा होने के बावजूद वह कभी नहीं डरे।

उनके भाई संजय खंडूरी, जो श्रीनगर में दुकान चलाते हैं, ने बताया कि राकेश अपनी मां की बहुत चिंता करते थे और उनकी सेवा में तत्पर रहते थे। उन्हें दो चीजों से विशेष लगाव था—एक अपनी मां से और दूसरा अमर उजाला से। वह सुबह 9 बजे तक दफ्तर पहुंच जाते थे। मीटिंग, सचिवालय जाना, लोगों से मिलना-जुलना और समाचार जुटाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। मैं भी कभी-कभी उन्हें मीडिया सेंटर में मिल जाता था।

राकेश खंडूरी को मैंने करीब से तब जाना, जब 2020 में मैंने उनके संपादक के निर्देश पर अमर उजाला में इतिहास पर कॉलम लिखना शुरू किया। मैंने देहरादून के इतिहास पर लगातार लिखा और इसके लिए काफी मेहनत और शोध किया। तब राकेश जी कहते थे, “आप जो जानकारी दे रहे हैं, वह हमें पता ही नहीं थी। इससे हमारे अखबार में निखार आ रहा है।” बाद में वह कॉलम बंद हो गया। फिर लोकसभा चुनाव के दौरान मैंने राकेश जी से अनुरोध किया कि ऐसी रोचक और ऐतिहासिक खबरें अखबार में शामिल होनी चाहिए। उन्होंने मुझे फिर से लिखने का मौका दिया। मेरी लिखी खबरें अमर उजाला में सुर्खियां बनीं।

राकेश खंडूरी सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल थे। उनके पास देहरादून में दो कमरे का घर भी नहीं था। वह अपने डोईवाला के पैतृक निवास पर ही रहते थे। लोगों ने बताया कि सर्दी में ठंड से बचने के लिए वह अपने पेट में अखबार डाल लेते थे। उनकी यही सादगी, ईमानदारी और अपने स्वास्थ्य की अनदेखी उनके लिए भारी पड़ गई। उनके हृदय में रुकावट का पता देर से चला, और जब वह ऑपरेशन के लिए तैयार हुए, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

खण्डूड़ी परिवार: गढ़वाल की ऐतिहासिक जड़ों से डोईवाला तक का सफर

भक्तियाना (श्रीनगर गढ़वाल) से रामपुर गांव तक फैले खण्डूड़ी परिवार की जड़ें गढ़वाल के राजाओं के समय से जुड़ी हैं, जिन्होंने उन्हें श्रीनगर में जमीन दी। स्वतंत्रता के बाद, परिवार ने श्रीनगर में बस अड्डे और रामलीला मैदान के लिए जमीन दान की। लगभग 65 साल पहले, चंद्र दत्त खण्डूड़ी नौकरी के लिए डोईवाला आए, जहाँ 1958 में उन्होंने गन्ना विभाग में सेवा शुरू की। उन्होंने 1990 में डोईवाला में दो कमरों का मकान बनाया, जहाँ से हाल ही में उनके बेटे, वरिष्ठ पत्रकार राकेश खण्डूड़ी का पार्थिव शरीर अंतिम यात्रा के लिए उठा, जिससे परिवार शोक में डूब गया। राकेश की वृद्ध माँ गहन दुख में हैं। राकेश जी अपने पीछे पत्नी और बी.टेक के द्वितीय वर्ष में पढ़ रहे बेटे को छोड़ गए । उनके बड़े भाई राजेंद्र दत्त खण्डूड़ी 2006 से थलीसैंण में शिक्षक हैं और पहले 14 साल तक अमर उजाला के लिए पत्रकार थे। छोटे भाई संजय श्रीनगर में दुकान चलाते हैं। चचेरा भाई योगेंद्र खण्डूड़ी सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस नेता हैं। चंद्र दत्त 1997 में रिटायर हुए और 2014 में उनका निधन हो गया।

बस में अंतिम यात्रा: देहरादून से डोईवाला

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शेखर बताते हैं कि वह एक सप्ताह तक शास्त्री नगर स्थित घर से स्कूटर पर अपने साथी राकेश खंडूरी को अमर उजाला कार्यालय पटेलनगर तक ले जाया करते थे। क्योंकि अरविंद जी राष्ट्रीय सहारा पटेलनगर में काम करते हैं। राकेश कभी-कभी शास्त्री नगर में अपने ताऊ के बेटे के घर पर रुक भी जाते थे। अरविंद शेखर ने बताया कि पिछले शनिवार को उन्होंने राकेश खंडूरी को कारगीचौक से डोईवाला के लिए बस में बिठाया था। अगले दिन, रविवार को राकेश एम्स चले गए। बताया जाता है कि, पिछले डेढ़ महीने में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने राकेश से व्यक्तिगत रूप से कहा था कि वह मेदांता या मैक्स जैसे अस्पतालों में अपना इलाज करवाएं, क्योंकि सूचना विभाग इसके लिए भुगतान करने को तैयार था। राकेश खंडूरी, जो ब्यूरो चीफ के नाते हर 15 से 20 दिन में खबरों के सिलसिले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात करते थे, उन्हें भी यही सलाह दी गई थी। लेकिन राकेश जी ने इसे हल्के में लिया और अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरती। वह नहीं चाहते थे कि कोई उनके लिए परेशान हो। इसलिए, उन्होंने एम्स में इलाज करवाने का फैसला किया, जो उनके गृहनगर डोईवाला के नजदीक था। वह नई दिल्ली के गंगाराम अस्पताल भी गए, लेकिन वहाँ दूरी के कारण ऑपरेशन करने के लिए मना कर दिया। अंतिम समय में भी राकेश जी ने बस से सफर किया, जबकि एक फोन कॉल पर कारगी चौक पर उनके लिए कई गाड़ियाँ हाजिर हो सकती थीं। वह एक ऐसे इंसान थे, जो किसी को तकलीफ नहीं देना चाहते थे।

आज हर पत्रकार का मन दुख और शोक से भरा हुआ है। राकेश खंडूरी की मौजूदगी उत्तराखंड की पत्रकारिता में आदर्श की एक अनुपम मिसाल थी। उनके कार्य, समर्पण और सादगी का उदाहरण हर किसी के लिए प्रेरणा था। दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ रहे विकास धूलिया के बाद इतने कम समय में हमने एक और अनमोल साथी को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया। राकेश जी का जाना न केवल पत्रकारिता जगत के लिए, बल्कि उन सभी के लिए अपूरणीय क्षति है, जो उन्हें जानते थे। उनकी स्मृति को हम विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
काश, आप फिर लौटकर आएँ।

Reported By: Shishpal Gusain

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