परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी विदेश यात्रा के पश्चात भारत लौटे। पाँच सप्ताह तक उन्होंने विश्वभर में भारतीय संस्कृति, योग और अध्यात्म का संदेश दिया।
इंदौर में आयोजित विशेष कार्यक्रम “उद्देश्यपूर्ण हस्तांतरण – पीढ़ियों के मध्य ज्ञान, मूल्य और विरासत के संग सेतु निर्माण” में स्वामी जी ने अपने संदेश में कहा कि असली विरासत धन नहीं, बल्कि संस्कार और मूल्य हैं। जब बुजुर्गों का अनुभव और युवाओं का उत्साह मिलते हैं तो परिवार, समाज और राष्ट्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा कि परिवार केवल संस्था नहीं, बल्कि जीवन का विश्वविद्यालय है। दादा-दादी अनुभव देते हैं, माता-पिता जिम्मेदारी और त्याग का संस्कार सिखाते हैं, जबकि बच्चे ऊर्जा और मासूमियत से जीवन को जीवंत बनाते हैं।
स्वामी जी ने स्पष्ट किया कि व्यवसाय केवल लाभ का साधन नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व निभाने का माध्यम भी होना चाहिए। उन्होंने आह्वान किया कि हर परिवार अगली पीढ़ी को केवल संपत्ति नहीं, बल्कि सेवा, करुणा और आध्यात्मिक दृष्टि की अमूल्य धरोहर भी सौंपे।
संदेश यही है कि धन क्षणभंगुर है, पर संस्कार और मूल्य शाश्वत हैं—यही परिवार, समाज और राष्ट्र की वास्तविक रोशनी हैं।
Reported By: Arun Sharma












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