उत्तराखंड राज्य स्थापना की रजत जयंती पर जहां पूरे प्रदेश में आंदोलनकारियों का सम्मान किया गया, वहीं किसान मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता भोपाल सिंह चौधरी को आमंत्रण सूची से बाहर रखने को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सामाजिक और किसान संगठनों ने इसे “राज्य के सच्चे सपूत का अपमान” बताया है।
भोपाल सिंह चौधरी उत्तराखंड राज्य आंदोलन के उन चर्चित चेहरों में रहे हैं जिन्होंने अलग राज्य की मांग के लिए वर्षों तक संघर्ष किया। मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड के बाद भी वे सक्रिय रूप से आंदोलन से जुड़े रहे। आंदोलन के दौरान उन पर कई गंभीर आरोप लगाए गए और उनके खिलाफ करीब 18 मुकदमे दर्ज हुए। प्रशासन ने उनका एनकाउंटर तक करने की तैयारी कर ली थी, लेकिन उन्होंने पौड़ी कोर्ट में आत्मसमर्पण कर साहस का परिचय दिया।
राज्य बनने के बाद उनके खिलाफ दर्ज सभी मुकदमे वापस ले लिए गए, लेकिन चौधरी ने कभी पेंशन, नौकरी या किसी भी व्यक्तिगत लाभ की मांग नहीं की। वे लगातार किसानों, युवाओं और समाज के वंचित वर्गों की आवाज उठाते रहे।
अब रजत जयंती समारोह से उनके नाम के गायब होने पर किसान मंच और स्थानीय आंदोलनकारियों ने नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि “जब छोटे योगदान वाले कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया जा रहा है, तो ऐसे आंदोलनकारी को नज़रअंदाज़ करना दुर्भाग्यपूर्ण है जिसने राज्य निर्माण में अपना जीवन समर्पित किया।”
समर्थकों ने आरोप लगाया है कि सरकार ने सम्मान सूची तैयार करते समय राजनीतिक प्राथमिकताओं को तरजीह दी और वास्तविक आंदोलनकारियों की उपेक्षा की। उन्होंने मांग की है कि सरकार चयन के मानदंड स्पष्ट करे और चौधरी जैसे सच्चे आंदोलनकारियों को पुनः सम्मानित करे।
यह विवाद एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि — क्या उत्तराखंड ने अपने असली आंदोलनकारियों को वह सम्मान दिया है जिसके वे सच्चे हकदार हैं?
Reported By: Arun Sharma












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